था इस्लाम का दौर जहां, कटते थे सर बागियों के,
मंदिरों के दिये बुझ चुके, सुनते थे कलमें नमाजियों के,
उस काल में हाहाकार मचा, औरंगजेब के तांडव का,
मर रही थी जनता सारी, नाद थे करते नित रणभैरव का,
सिनसिनी थी ब्रज की रानी, शेरों की जननी कहलाती थी,
जाटों का बाहुबल जाहिर था, खेतों में तलवारें लहलहाती थी,
हर किसान यहां का बागी था, था भैरवी सी हुंकार लिये,
हल तलवार साथ था रखता, जाट नंदराम का आगाज लिये,
इसी नंदराम की गद्दी पर, आसीन हुआ फिर जलजला,
ब्रज में जिसकी तूती बोलती, जनता कहती इसे गॉड गोकुला,
वीर बड़ा महावीर बड़ा, था वीरभद्र सा विकराल मनुज,
अकेला तुर्कों पर भारी रहा, डर जाते तुफां भी सम्मुख,
किसान कौम की ताकत का, असली अहसास उसने करवाया,
जब राजे महाराजे दुबक गये, उसी ने मुगलों का दंभ पिघलाया,
10 मई 1666 का भीषण रण, इतिहास बना जाट गोकुला,
चंद किसानों की ताकत ने, तिलपत में ला दिया जलजला,
उत्तर भारत का पहला वीर वो, जिसने मुगलों की नाक उड़ादी,
जमीर बेचके राज करने वालों की, औकात इस रण में बता दी,
दरबारों की बोटियों के दम पर, इतिहास झूठे लिखे गये,
असली यौद्धा दफन हो गये, कायर सियारों के थोथे शौर्य रचे गये,
जिस दुर्गादास को तुम पूज रहे, वो गोकुला का था अनुयायी,
चार साल पहले ही गोकुल ने, मुगलों के छाती पे रणभेरी बजायी,
गुरू तेगबहादुर को नमन मेरा, शीश अर्पण था कर दिया,
मगर 6 साल पहले ही, कौम रक्षा हेतू गोकुला था कट गया,
जब मुगलों का हर सेनापती, पिट पिट कर जाता था,
भारतवर्ष के हर यौद्धा का, सीना गर्व से भर जाता था,
ना राजा आया ना महाराजा आया, न आया कोई रजपूत-मराठा,
अकेला किसान जाट गोकुला, औरंगजैब की सीमा पर रहा डटा,
जब सारे षड़्यंत्र विफल हुए, उखड़ रहे थे मुगलों के पांव,
भीषण सेना लेकर तब, औरंगजैब चला सिनसिनी गांव,
कितना खौफ रहा होगा, उस ब्रज भूमि के वीर प्रचंड का,
मुट्ठी भर कृषक वीरों के आगे, जलसा लाया गज-तुरंग अखंड था,
उस दिन भारत ने एसा समर देखा, देखा भीषण आगाज यहां,
जाटों की भारी तलवारों ने, काट दिये मुगलों के सर-ताज जहां,
रण में वीरगति चाहता था वो, मगर तुर्कों ने सोचा कुछ और था,
आगरे किले की हर नींव बोल उठी, दहाड़ रहा पिंजरे में शेर था,
गोकुल का विद्रोह भयंकर था, हर हिंदुस्तानी था जाग रहा,
मगर इतिहास के पन्नों में, यह वीर सदा ही बेनाम रहा,
आओ मिलकर नमन करें, इस शौर्यवीर पराक्रमी मनुज को,
भारत धरा के अप्रतीम साहस, पौरूष झलकता सिंहानुज को,
नमन करे वैभवमय साहस को, कलमदूत ये तेजाभक्त बलवीर,
नित नित पूजनीय कर्म तेरे, सदा अमर है तू गोकुल वीर,
-
लेखक:
बलवीर घिंटाला तेजाभक्त मकराना नागौर