अमर हो गया जाटों का सूरज, दे गया गौरवगान हमें

बच रही थी जागीरें जब, बहु बेटियों के डोलों से,तब एक सूरज निकला, ब्रज भौम के शोलों से,दिन नही मालूम मगर, थी फरवरी सत्रह सो सात,जब पराक्रमी बदन के घर, पैदा हुआ बाहुबली जाट,था विध्वंश था प्रलय, वो था जिता जागता प्रचंड तूफां,तुर्कों के बनाये साम्राज्य का, मिटा दिया नामो निशां,खेमकरण की गढी पर, बना कर लोहागढ ऊंचा नाम किया,सुजान नहर लाके उसने, कृषकों को जीवनदान दिया,बात है सन् 1748 की, जब मचा बगरू में हाहाकार,7 रजपूती सेनाओ का, अकेला सूरज कर गया नरसंहार,इस युद्ध ने इतिहास को, उत्तर भारत का नव यौद्धा दिया,मुगल मराठों का कलेजा, अकेले सूरज ने हिला दिया,मराठा मुगल रजपूतो ने, मिलकर एक मौर्चा बनाया,मगर छोटी गढी कुम्हेर तक को, यह मौर्चा जीत न पाया,घमंड में भाऊ कह गया, नहीं चाहिए जाटों की ताकत,मराठों की दुर्दशा बता रहा, तृतीय समर ये पानीपत,अब्दाली के सेना ने जब, मराठों की औकात बताई,रानी किशोरी ने ही तब, शरण में लेके इनकी जान बचाई,दंभ था लाल किले को खुद पे, कहलाता आगरे का गौरव था,सूरज ने उसकी नींव हीला दी, जाटों की ताकत का वैभव था,बलशाली था हलधर अवतारी था, था जाटों का अफलातून,जाट प्लेटो गजमुखी वह, फौलादी जिस्म गर्वीला खून,हारा नहीं कभी रण में, ना कभी धोके से वार किया,दुश्मन की हर चालों को, हंसते हंसते ही बिगाड़ दिया,ना केवल बलशाली था, बल्कि विधा का ज्ञानी था,गर्व था जाटवंश के होने का, न घमंडी न अभिमानी था,25 दिसंबर 1763 में, नजीबद्दीन से रणसमर हुआ,सहोदरा की माटी में तब, इसका रक्त विलय हुआ,56 वसंत की आयु में भी, वह शेरों से खुला भिड़ जाता था,जंगी मैदानों में तलवारों से, वैरी मस्तक उड़ा जाता था,वीरों की सदा यह पहचान रही है, रणसमर में देते बलिदान है,इस सूरज ने वही इतिहास रचा, शत शत तुम्हें प्रणाम है,अमर हो गया जाटों का सूरज, दे गया गौरवगान हमें,कर गया इतिहास उज्ज्वल, दे गया इक अभिमान हमें,'तेजाभक्त बलवीर' तुम्हें वंदन करे, करे नमन चरणों में तेरे,सदा वैभवशाली तेरा शौर्य रहे, सदा विराजो ह्रदय में मेरे,लेखक-बलवीर घिंटाला तेजाभक्त मकराना नागौर9414980515

अमर हो गया जाटों का सूरज, दे गया गौरवगान हमें
अमर हो गया जाटों का सूरज, दे गया गौरवगान हमें



बच रही थी जागीरें जब, बहु बेटियों के डोलों से,
तब एक सूरज निकला, ब्रज भौम के शोलों से,
दिन नही मालूम मगर, थी फरवरी सत्रह सो सात,
जब पराक्रमी बदन के घर, पैदा हुआ बाहुबली जाट,
था विध्वंश था प्रलय, वो था जिता जागता प्रचंड तूफां,
तुर्कों के बनाये साम्राज्य का, मिटा दिया नामो निशां,
खेमकरण की गढी पर, बना कर लोहागढ ऊंचा नाम किया,
सुजान नहर लाके उसने, कृषकों को जीवनदान दिया,
बात है सन् 1748 की, जब मचा बगरू में हाहाकार,
7 रजपूती सेनाओ का, अकेला सूरज कर गया नरसंहार,
इस युद्ध ने इतिहास को, उत्तर भारत का नव यौद्धा दिया,
मुगल मराठों का कलेजा, अकेले सूरज ने हिला दिया,
मराठा मुगल रजपूतो ने, मिलकर एक मौर्चा बनाया,
मगर छोटी गढी कुम्हेर तक को, यह मौर्चा जीत न पाया,
घमंड में भाऊ कह गया, नहीं चाहिए जाटों की ताकत,
मराठों की दुर्दशा बता रहा, तृतीय समर ये पानीपत,
अब्दाली के सेना ने जब, मराठों की औकात बताई,
रानी किशोरी ने ही तब, शरण में लेके इनकी जान बचाई,
दंभ था लाल किले को खुद पे, कहलाता आगरे का गौरव था,
सूरज ने उसकी नींव हीला दी, जाटों की ताकत का वैभव था,
बलशाली था हलधर अवतारी था, था जाटों का अफलातून,
जाट प्लेटो गजमुखी वह, फौलादी जिस्म गर्वीला खून,
हारा नहीं कभी रण में, ना कभी धोके से वार किया,
दुश्मन की हर चालों को, हंसते हंसते ही बिगाड़ दिया,
ना केवल बलशाली था, बल्कि विधा का ज्ञानी था,
गर्व था जाटवंश के होने का, न घमंडी न अभिमानी था,
25 दिसंबर 1763 में, नजीबद्दीन से रणसमर हुआ,
सहोदरा की माटी में तब, इसका रक्त विलय हुआ,
56 वसंत की आयु में भी, वह शेरों से खुला भिड़ जाता था,
जंगी मैदानों में तलवारों से, वैरी मस्तक उड़ा जाता था,
वीरों की सदा यह पहचान रही है, रणसमर में देते बलिदान है,
इस सूरज ने वही इतिहास रचा, शत शत तुम्हें प्रणाम है,
अमर हो गया जाटों का सूरज, दे गया गौरवगान हमें,
कर गया इतिहास उज्ज्वल, दे गया इक अभिमान हमें,
'तेजाभक्त बलवीर' तुम्हें वंदन करे, करे नमन चरणों में तेरे,
सदा वैभवशाली तेरा शौर्य रहे, सदा विराजो ह्रदय में मेरे,
लेखक-
बलवीर घिंटाला तेजाभक्त 
मकराना नागौर
9414980515