थाल सजाकर गौरव का, चले हैं पूजने वीर प्रसूता

थाल सजाकर गौरव का, चले हैं पूजने वीर प्रसूता,लोहागढ का दंभ पूजने, नमन सूरज की पौरूषता,चले झूमते मस्ती में हम, ना अपना पथ आये भूल, वहीं हमारा दीप जलेगा, चढेगा वहीं विजयी फूल,ना देख सकूं निज जीवन, ना दृष्टि ईश दर्शन को है तरसी, बस देख लूं लोहागढ को, मेरी आंखे बरसों से है प्यासी,ना प्रयाग रामेश्वर गंगाकूल, इधर ना हरिद्वार काशी,इसी जगह है तीर्थ हमारा भीषण गरजे जाटवंशी,अपने अचल स्वतंत्र दुर्ग पर, सुनकर बैरी की बोली,निकल पड़ी लेकर तलवारें, जहां जाट जवानों की टोली, रानियों ने जहां देशहित, पति संग समर लड़ते देखा,जिस मिट्टी की रक्षा खातिर, बच्चे बच्चे को मरते देखा, जहां जवाहर ने तांडव रचाया, दिल्ली की ज्वाला पर, क्षणभर वहीं समाधि लगेगी, बैठ उसी मृग-छाला पर,वह आकुल रहती थी असी, प्रणय मिलन नरमुंडो से,थे भिड़ाते अपने वज्र वक्षों को, वे जाटवीर गजसुंडो से,शरणागत को देव समझ वे, नहीं डरे ललकारों से, रण को प्रिय खेल समझ वे, जीत छीनते भयहारों से, तुर्क फिरंगी अर रजपूतों का, दर्प पिघलाया सर-कृपाणों से, वे भीषण क्रोधी लोहागढ के, नहीं मोह पाले कभी प्राणों के,है नमन तुम्हें शत शत जाटवीरों, घमंड नहीं गर्व बोल रहा मेरा,इसी लोहागढ की प्राचीरों से, था निकला स्वतंत्रता का सवेरा,'तेजाभक्त' पूजन करने आया, रक्ततिलक करने भाल कपालों पे,कर दिये शीश अर्पण जाटवीरों, काट काट अरिनालों पे,.... -लेखक- Balveer Ghintala 'तेजाभक्त' मकराना नागौर 9414980415--- ------

थाल सजाकर गौरव का, चले हैं पूजने वीर प्रसूता
थाल सजाकर गौरव का, चले हैं पूजने वीर प्रसूता
थाल सजाकर गौरव का, चले हैं पूजने वीर प्रसूता,
लोहागढ का दंभ पूजने, नमन सूरज की पौरूषता,
चले झूमते मस्ती में हम, ना अपना पथ आये भूल,
 वहीं हमारा दीप जलेगा, चढेगा वहीं विजयी फूल,
ना देख सकूं निज जीवन, ना दृष्टि ईश दर्शन को है तरसी,
 बस देख लूं लोहागढ को, मेरी आंखे बरसों से है प्यासी,
ना प्रयाग रामेश्वर गंगाकूल, इधर ना हरिद्वार काशी,
इसी जगह है तीर्थ हमारा भीषण गरजे जाटवंशी,
अपने अचल स्वतंत्र दुर्ग पर, सुनकर बैरी की बोली,
निकल पड़ी लेकर तलवारें, जहां जाट जवानों की टोली,
 रानियों ने जहां देशहित, पति संग समर लड़ते देखा,
जिस मिट्टी की रक्षा खातिर, बच्चे बच्चे को मरते देखा,
 जहां जवाहर ने तांडव रचाया, दिल्ली की ज्वाला पर,
 क्षणभर वहीं समाधि लगेगी, बैठ उसी मृग-छाला पर,
वह आकुल रहती थी असी, प्रणय मिलन नरमुंडो से,
थे भिड़ाते अपने वज्र वक्षों को, वे जाटवीर गजसुंडो से,
शरणागत को देव समझ वे, नहीं डरे ललकारों से,
 रण को प्रिय खेल समझ वे, जीत छीनते भयहारों से,
 तुर्क फिरंगी अर रजपूतों का, दर्प पिघलाया सर-कृपाणों से,
 वे भीषण क्रोधी लोहागढ के, नहीं मोह पाले कभी प्राणों के,
है नमन तुम्हें शत शत जाटवीरों, घमंड नहीं गर्व बोल रहा मेरा,
इसी लोहागढ की प्राचीरों से, था निकला स्वतंत्रता का सवेरा,
'तेजाभक्त' पूजन करने आया, रक्ततिलक करने भाल कपालों पे,
कर दिये शीश अर्पण जाटवीरों, काट काट अरिनालों पे,

-लेखक: Balveer Ghintala 'तेजाभक्त'