वीर तेजाजी की गाथा: जन्मोत्सव से युवराज बनने तक की प्रेरक कहानी

राजस्थान के गौरव, लोकदेवता वीर तेजाजी की जीवनगाथा ना केवल अद्भुत है, बल्कि साहस, त्याग और आदर्शों की मिसाल भी है। इस कथा का यह भाग तेजाजी के जन्म, उनके परिवार, माताओं के त्याग और युवराज बनाए जाने की ऐतिहासिक घटना को विस्तार से प्रस्तुत करता है।
खरनाळ गणराज्य की परंपरा और उत्तराधिकार
तेजाजी महाराज के दादा बक्सा जी धौळिया ने खरनाळ गणराज्य की स्थापना की थी। वृद्धावस्था में प्रवेश करते ही उन्होंने प्रजा की सहमति से राजकाज का उत्तरदायित्व अपने सबसे योग्य पुत्र ताहड़ जी को सौंप दिया। बक्साजी के सात पुत्र थे, लेकिन ताहड़ जी को अस्त्र-शस्त्र विद्या, नीति, धर्म और युद्धकौशल में श्रेष्ठ होने के कारण राजा बनाया गया। बक्साजी स्वयं संरक्षक की भूमिका में रहकर मार्गदर्शन करते रहे।
ताहड़ जी का विवाह और संतान की चिंता
ताहड़ जी का विवाह वि. सं. 1104 में अजमेर के किशनगढ़ के पास स्थित त्योद गांव के गणपति करसनजी सोढी की पुत्री रामकुंवरी के साथ हुआ। विवाह के 12 वर्षों बाद भी संतान प्राप्त नहीं हुई, जिससे पूरा गणराज्य चिंता में डूबा गया। वृद्ध बक्साजी की हालत भी इस चिंता के कारण बिगड़ने लगी। इस स्थिति से व्यथित होकर रामकुंवरी ने स्वयं अपने पति को दूसरा विवाह करने की अनुमति दी, हालांकि ताहड़ जी पहले इसके लिए तैयार नहीं थे।
ताहड़ जी का दूसरा विवाह
जनहित, पत्नी की जिद और पिता की अस्वस्थता के चलते ताहड़ जी ने अंततः वि. सं. 1116 में दूसरा विवाह रामी देवी से किया। रामी कोयलापाटन (अब आठ्यासन) के करणो जी फिड़ौदा की पुत्री थीं। यह विवाह भाटों की पोथियों में आज भी उल्लिखित है। विशेष बात यह है कि वीर तेजाजी की दोनों माताओं के नाम "राम" से शुरू होते थे – रामकुंवरी और रामीदेवी।
ताहड़ जी के पुत्र
रामी देवी से ताहड़ जी को पांच पुत्र हुए:
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रूप जी (पत्नी: रतनी खींचड़)
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रण जी (पत्नी: शेरां टांडी)
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गुण जी (पत्नी: रीतां भांभू)
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महेश जी (पत्नी: राजां बसवाणी)
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नग जी (पत्नी: माया बटिमासर)
रूप जी की वंश परंपरा जस्स जी, शेराराम जी, अरस जी, सुवाराम जी, मेवाराम जी, और हरपाल जी तक चली।
रामकुंवरी की तपस्या और नागदेवता का वरदान
पति का दूसरा विवाह होते ही रामकुंवरी पीहर त्योद चली गईं और वहां उन्होंने अपने कुलगुरु मंगलनाथ जी के मार्गदर्शन में शिव और नागदेवता की घोर तपस्या आरंभ की। 10-12 वर्षों की तपस्या के बाद नागदेवता ने वरदान दिया और उसी के फलस्वरूप वि. सं. 1130 की माघ सुदी 14, गुरुवार (29 जनवरी 1074) को रामकुंवरी ने तेजल (तेजाजी) को जन्म दिया। त्योद और खरनाल दोनों ही इस खबर से आनंदित हो उठे।
तेजाजी के जन्मस्थल के पास नागदेवता की बांबी आज भी सुरसुरा गांव के मुख्य मंदिर के गर्भगृह में स्थित है, जो इस दिव्य गाथा की साक्षात गवाही देती है।
तेजल की बहन राजल का जन्म
तेजाजी के तीन साल बाद वि. सं. 1133 में रामकुंवरी ने एक कन्या को जन्म दिया – राजल बाई, जो छह भाइयों में इकलौती बहन थीं। राजल और तेजाजी का भाई-बहन का प्रेम आज भी लोकगीतों और कहानियों में अमर है।
नामकरण और खरनाल आगमन
तेजाजी के जन्मोत्सव पर त्योद में भव्य आयोजन हुआ। ताहड़ जी, रामी देवी और पांचों पुत्रों सहित पूरा खरनाल परिवार त्योद पहुंचा। रामी देवी ने तेजल को गोद में लिया और मातृप्रेम से नहलाया। पांचों भाई अपने छोटे भाई के साथ खूब खेले और प्रसन्न हुए। बक्साजी की लालसा थी कि अपने पौत्र को देखने को मिले। रामी की प्रार्थना पर रामकुंवरी तेजल को लेकर खरनाल रवाना हुईं।
राजकुमार का स्वागत और युवराज की घोषणा
खरनाल राज्य की सीमाओं पर मूंडवा ग्राम में राजकुमार तेजल का स्वागत गाजे-बाजे के साथ हुआ। पूरा गणराज्य जश्न में डूबा था। बक्साजी ने तेजल को युवराज घोषित करने की इच्छा जताई लेकिन पांच बड़े पुत्रों के होते हुए निर्णय लेना कठिन था।
यहां रामी देवी ने महान उदाहरण प्रस्तुत किया। उन्होंने बहन रामकुंवरी के त्याग, तप और बलिदान को देखते हुए अपने पुत्रों को युवराज बनने से रोक दिया और तेजल को युवराज घोषित करने का प्रस्ताव रखा। एक पत्नी ने जहां पति को दूसरा विवाह कर जनहित साधने की प्रेरणा दी, वहीं दूसरी पत्नी ने अपने पुत्रों के अधिकार का त्याग कर कर्तव्य निभाया।
वीर तेजाजी का भाग्य और मातृशक्ति का महत्व
वीर तेजाजी को न केवल योद्धा के रूप में बल्कि दो महान माताओं – रामकुंवरी और रामी देवी – के आशीर्वाद स्वरूप धरती पर भेजा गया था। उनकी माताओं की दृढ़ता, त्याग और धैर्य के बिना यह संभव न होता। उनके नामों के समान ही उनके स्वभाव भी शांत, सशक्त और सहनशील थे।
अंत में…
तेजाजी की जन्मगाथा केवल एक राजकुमार की कहानी नहीं, यह भारतीय नारी शक्ति, पारिवारिक मूल्यों, कर्तव्य और धर्म का परिचायक है। ये माताएं आज भी लाखों महिलाओं के लिए प्रेरणा हैं।
इस गाथा की अगली कड़ी में पढ़िए:
? वीर तेजाजी का विवाह और शिक्षा-दीक्षा की कथा...
? जय वीर तेजाजी महाराज! ?
? लेखक: बलवीर घिंटाला 'तेजाभक्त'
? मकराना, नागौर
?️ संपादन सहयोग: संत कान्हाराम, सुरसुरा (अजमेर)